शून्यवाद vs. निहिलिज़्म: सत्य की खोज
नमस्ते शिक्षार्थियों!
कल्पना करें एक ऐसी दुनिया जहां वास्तविकता का सार विचारों, शब्दों, या तर्क से पूरी तरह समझा नहीं जा सकता। दूसरी शताब्दी के बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन ने शून्यवाद के दर्शन के माध्यम से अस्तित्व की हमारी धारणाओं को चुनौती दी। पश्चिमी विचारधारा इसे निहिलिज्म के रूप में देखती है, लेकिन नागार्जुन का शून्यवाद यह बताता है कि ब्रह्मांड में कुछ भी स्थायी, स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रखता। वास्तव में, इस सिद्धांत में एक सुंदर गहराई है जो हमें जीवन की सतह से परे देखने के लिए प्रेरित करती है। जबकि कुछ लोग शून्यवाद को निहिलिज्म से तुलना करते हैं, जो जीवन को अर्थहीन मानता है, नागार्जुन का दर्शन हमें ब्रह्मांड और हमारी भूमिका को समझने का एक परिवर्तनकारी तरीका प्रदान करता है।
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