उपनिषदों से मिलने वाली अद्भुत शिक्षाएँ (भाग 2)

नमस्ते शिक्षार्थियों!

(यदि आपने भाग 1 नहीं पढ़ा है, तो उसे पहले पढ़ें ताकि इस भाग को अच्छी तरह से समझ सकें। भाग 1 में हमने पाँच प्रमुख उपनिषदों की शिक्षाओं पर चर्चा की थी।)

उपनिषद् केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, वे जीवन को समझने और सही दिशा में चलने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन देते हैं। ये हमारे प्राचीन ज्ञान के वह बहुमूल्य संग्रह हैं जो आज भी उतने ही महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हैं जितने सहस्त्रों वर्ष पहले थे। इस दूसरे भाग में हम उन पाँच और उपनिषदों की ओर देखेंगे, जिनकी शिक्षाएं हमारे जीवन में स्थायित्व, उद्देश्य और संतुलन लाने में सहायता करती हैं।

तैत्तिरीय उपनिषद्: नैतिकता और अनुशासन का महत्व

तैत्तिरीय उपनिषद् यजुर्वेद की परंपरा से आता है और प्राचीन गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के लिए यह एक आदर्श मार्गदर्शक था। इसमें जीवन के नैतिक और अनुशासन से जुड़े पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया गया है। यह उपनिषद् तीन भागों में विभाजित है, जिन्हें वल्ली कहा जाता है, और इनमें जीवन के विभिन्न चरणों के बारे में महत्वपूर्ण सीखें दी गई हैं।

प्रथम वल्ली: यह हमें सिखाती है कि हर व्यक्ति चाहे वह किसी भी वर्ग या स्तर का हो, सम्मान का अधिकारी है। इसका सबसे प्रसिद्ध संदेश है: “अतिथि देवो भव:”, अर्थात “अतिथि भगवान के समान होता है।” हमें यह सिखाया जाता है कि हमें अपने जीवन में हर किसी के साथ प्रेम और आदर से पेश आना चाहिए।

शिक्षा: हमारे व्यवहार और आचरण का मापदंड यह होना चाहिए कि हम दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। अगर हम सम्मान देंगे, तो हमें भी सम्मान मिलेगा।

द्वितीय वल्ली: इसमें कहा गया है कि व्यक्ति का काम ऐसा होना चाहिए जो आलोचना से परे हो। चाहे हम विद्यार्थी हों, कलाकार हों या पेशेवर, हमारे कार्यों में मेहनत, ईमानदारी और समर्पण दिखना चाहिए।

शिक्षा: कर्म की पवित्रता और उसका उद्देश्य हमारे जीवन का आदर्श होना चाहिए। हमें किसी बाहरी प्रशंसा के लिए नहीं बल्कि अपने नैतिक मूल्यों के आधार पर काम करना चाहिए।

तृतीय वल्ली: यह वल्ली हमें सिखाती है कि हमें बिना किसी पूर्वाग्रह के सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। चाहे वह किसी की जाति हो, धर्म हो, रंग हो, या उसकी आर्थिक स्थिति हो, सभी मनुष्यों का आदर करना चाहिए।
शिक्षा: हमें अपने कार्यों से यह दिखाना चाहिए कि हम हर किसी के साथ बिना किसी भेदभाव के समान प्रेम और आदर करते हैं।

ऐतरेय उपनिषद्: आत्मा की खोज और जीवन का उद्देश्य

ऐतरेय उपनिषद् का मुख्य उद्देश्य आत्मा और सृष्टि के रहस्यों को उजागर करना है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया गया है: “मैं कौन हूँ?” यह प्रश्न हर इंसान के मन में कभी न कभी उठता है, खासकर जब वह जीवन में संघर्षों या असफलताओं का सामना करता है।

प्रथम अध्याय: इस अध्याय में सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन है। इसमें कहा गया है कि यह संसार एक अनंत आत्मा द्वारा रचा गया है, और हम सब उसी आत्मा के अंश हैं। जैसे समुद्र की लहरें अलग-अलग दिखती हैं, वैसे ही हम सभी अलग-अलग प्रतीत होते हैं, लेकिन वास्तविकता में हम सब एक ही आत्मा का हिस्सा हैं।

शिक्षा: आत्मा के ज्ञान से हमें यह समझ में आता है कि हम असफलताओं से बंधे नहीं हैं। हमारी वास्तविक पहचान हमारी आत्मा है, जो अनंत और अजेय है।

द्वितीय अध्याय: यह अध्याय सिखाता है कि जीवन केवल भौतिक शरीर तक सीमित नहीं है। हमारी वास्तविक पहचान आत्मा है, जो सभी भौतिक अनुभवों से परे है।

शिक्षा: इस उपनिषद् की यह महत्वपूर्ण सीख है कि हमें अपने बाहरी जीवन से ऊपर उठकर आत्म-चेतना को समझने की आवश्यकता है। इससे हमें शांति और संतुलन की प्राप्ति होती है।

छांदोग्य उपनिषद्: ज्ञान की शक्ति और ‘ऊँ’ का महत्व

छांदोग्य उपनिषद् सबसे पुराने और व्यापक उपनिषदों में से एक है। इसका मुख्य विषय ज्ञान और ध्वनि की शक्ति पर केंद्रित है। इस उपनिषद् की सबसे महत्वपूर्ण सीख ‘ऊँ’ ध्वनि के बारे में है, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड की आधारभूत ध्वनि मानी जाती है।

ऊँ की महिमा: इस उपनिषद् में ‘ऊँ’ को सिर्फ एक ध्वनि नहीं, बल्कि ब्रह्मांड का सार बताया गया है। यह ध्वनि इस पूरी सृष्टि का प्रतीक है और इसके उच्चारण से आत्मा की चेतना जागृत होती है।

शिक्षा: ‘ऊँ’ का उच्चारण हमें इस बात की याद दिलाता है कि हम इस ब्रह्मांड का हिस्सा हैं और हमारे भीतर ब्रह्मांडीय ऊर्जा प्रवाहित हो रही है।

ज्ञान और आत्मज्ञान का महत्व: इस उपनिषद् में बताया गया है कि ज्ञान केवल सूचनाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि वह गहरी समझ और आत्मज्ञान तक पहुँचना चाहिए। सिर्फ सतही जानकारी से संतुष्ट न हों, बल्कि आत्मा की गहराइयों में जाकर सच्चे ज्ञान की खोज करें।

शिक्षा: ज्ञान वह है जो हमें बाहरी और आंतरिक संसार के बीच संतुलन स्थापित करने में मदद करता है।

बृहदारण्यक उपनिषद्: प्रेम, धन और अनन्त ज्ञान का संवाद

बृहदारण्यक उपनिषद् सबसे बड़ा और गहन उपनिषद् है, जिसमें ऋषि याज्ञवल्क्य और उनकी पत्नी मैत्रेयी के बीच का संवाद बहुत प्रसिद्ध है। यह संवाद प्रेम, धन और आत्मज्ञान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालता है।

संवाद का सार: याज्ञवल्क्य अपनी पत्नी से कहते हैं कि वे सन्यास लेने जा रहे हैं और अपनी संपत्ति का बंटवारा करेंगे। मैत्रेयी उनसे पूछती हैं कि क्या धन से अमरत्व की प्राप्ति हो सकती है? याज्ञवल्क्य उत्तर देते हैं कि धन से सुख मिल सकता है, परंतु आत्मज्ञान ही अमरत्व का रास्ता है।

शिक्षा: धन से केवल भौतिक सुख प्राप्त हो सकता है, परंतु आत्मज्ञान ही हमें सच्ची शांति और अमरत्व की ओर ले जा सकता है।

प्रेम का महत्व: याज्ञवल्क्य बताते हैं कि प्रेम किसी चीज़ पर अधिकार करने का साधन नहीं है, बल्कि दूसरों में ईश्वर की पहचान करना है। यह समझाता है कि हमारे रिश्ते भी धन पर आधारित नहीं होने चाहिए, बल्कि परस्पर सम्मान और समझ पर आधारित होने चाहिए।
शिक्षा: सच्चे प्रेम और धन की पहचान तब होती है जब हम आत्मज्ञान प्राप्त करते हैं।

माण्डूक्य उपनिषद्: चेतना की चार अवस्थाएं

माण्डूक्य उपनिषद् छोटा होने के बावजूद बेहद महत्वपूर्ण उपनिषद् है। इसमें चेतना की चार अवस्थाओं का वर्णन किया गया है, जो जीवन के हर पहलू को समझने में हमारी मदद करती हैं।

चार अवस्थाएं:

  1. जागृत अवस्था: इसमें हम अपनी दैनिक गतिविधियों में पूरी तरह से शामिल रहते हैं और बाहरी संसार से जुड़े रहते हैं।
  1. स्वप्न अवस्था: इसमें हमारा मस्तिष्क अंदर की ओर मुड़ जाता है और हम अपने अवचेतन मन के अनुभवों में खो जाते हैं।
  1.  सुषुप्ति अवस्था: इसमें हमारा मस्तिष्क और शरीर दोनों ही बाहरी संसार से पूरी तरह अलग हो जाते हैं और हमें गहरी नींद आती है।
  1. तुरीय अवस्था: यह सबसे उच्च अवस्था है, जिसमें हम शुद्ध चेतना की स्थिति में पहुँच जाते हैं, जहाँ हमें आत्मा और ब्रह्मांड की एकता का अनुभव होता है।

शिक्षा: यह उपनिषद् सिखाता है कि जीवन केवल जागृति, स्वप्न और नींद की अवस्थाओं तक सीमित नहीं है। जीवन का वास्तविक  उद्देश्य तुरीय अवस्था प्राप्त करना है, जो शुद्ध चेतना और आंतरिक शांति की ओर ले जाती है।

निष्कर्ष

उपनिषदों की शिक्षाएं केवल प्राचीन ग्रंथों में लिखे गए विचार नहीं हैं, बल्कि वे आज के जीवन में भी उतनी ही महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हैं। तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्यक और माण्डूक्य उपनिषद् हमें जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर गहरा ज्ञान प्रदान करते हैं। ये हमें यह सिखाते हैं कि नैतिकता, आत्म-ज्ञान, प्रेम, धन और चेतना के सही अर्थ को समझकर ही हम जीवन में संतुलन और शांति पा सकते हैं।

  1. तैत्तिरीय उपनिषद् हमें बताता है कि जीवन में नैतिकता और अनुशासन का महत्व क्या है। हर कार्य को निष्ठा और ईमानदारी के साथ करना चाहिए, और हर व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए।
  2. ऐतरेय उपनिषद् यह सिखाता है कि हम केवल अपने भौतिक शरीर तक सीमित नहीं हैं, बल्कि हमारी वास्तविक  पहचान हमारी आत्मा है। आत्म-ज्ञान ही हमें जीवन के संघर्षों से उबार सकता है और शांति प्रदान कर सकता है।
  3. छांदोग्य उपनिषद् ज्ञान और ‘ऊँ’ के महत्व पर जोर देता है। यह हमें सिखाता है कि ज्ञान केवल बाहरी सूचनाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि आत्मा की गहराइयों तक पहुँचकर हमें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति करनी चाहिए।
  4. बृहदारण्यक उपनिषद् प्रेम, धन और आत्म-ज्ञान के बीच के संबंध को समझाता है। यह हमें बताता है कि भौतिक धन से सुख मिल सकता है, लेकिन आत्मज्ञान से ही सच्ची शांति और अमरत्व की प्राप्ति होती है।
  5. माण्डूक्य उपनिषद् चेतना की चार अवस्थाओं को समझने में हमारी मदद करता है। यह सिखाता है कि जीवन की सच्ची समझ तभी आती है जब हम तुरीय अवस्था में पहुँचते हैं, जहाँ हमें शुद्ध चेतना का अनुभव होता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *