गुरुकुलों से आधुनिक शिक्षा प्रणाली को क्या सीखना चाहिए?

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली, जिसे हम गुरुकुल कहते हैं, न केवल एक शैक्षिक व्यवस्था थी, बल्कि यह जीवन के प्रत्येक पहलू की समझ और समग्र विकास को सुनिश्चित करने वाली एक पूरी प्रक्रिया थी। जब हम आज के आधुनिक शिक्षा प्रणाली की बात करते हैं, तो हमें यह महसूस होता है कि गुरुकुलों के सिद्धांतों में एक ऐसी गहराई थी, जो आज की शिक्षा प्रणाली से कहीं अधिक प्रभावी थी।

आज, जब हम अपने शिक्षा प्रणाली में सुधार की बात करते हैं, तो गुरुकुलों से सीखी गई बातें बेहद महत्वपूर्ण हो जाती हैं। गुरुकुल प्रणाली में न केवल ज्ञान, बल्कि जीवन के मूल्य, अनुशासन, और आत्मनिर्भरता भी सिखाई जाती थी। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि गुरुकुलों से हम क्या सीख सकते हैं और इन सिद्धांतों को कैसे आधुनिक शिक्षा में लागू किया जा सकता है।

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What Does God Look Like

ईश्वर का स्वरूप: वेदों में निर्गुण और पुराणों में सगुण

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

ईश्वर के स्वरूप को लेकर मानव समाज में सदियों से विभिन्न मत और दृष्टिकोण रहे हैं। एक ओर वेदांत दर्शन ईश्वर को निर्गुण और निराकार मानता है, वहीं दूसरी ओर पुराणों में सगुण देवताओं की पूजा का महत्व बताया गया है। यह द्वंद्व कई बार लोगों के मन में उलझन पैदा करता है कि आखिर ईश्वर का वास्तविक स्वरूप क्या है। क्या ईश्वर केवल एक निराकार ऊर्जा है, या फिर वह किसी साकार रूप में भी हमारी पूजा-अर्चना का पात्र हो सकता है? इस लेख में हम इन प्रश्नों के उत्तर तलाशेंगे और वेदों तथा पुराणों के दृष्टिकोण से ईश्वर के दोनों स्वरूपों की गहराई से विवेचना करेंगे।

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इंद्र : वेदों में ईश्वर से पुराणों में भोगी राजा

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

बहुत समय पहले, जब दुनिया नई थी, धरती, आकाश और नदियों को मानवीय रूप दिया गया था। बारिश, बिजली, और हवा को देवताओं की शक्तियाँ माना गया। इन देवताओं में सबसे प्रमुख थे इंद्र। वेदों के अनुसार, इंद्र एक महान योद्धा, प्रकृति के संरक्षक और देवताओं के नेता थे।

लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, इंद्र का स्वरूप बदलने लगा। जो इंद्र वेदों में धरती और आकाश को रचने वाले सृजनकर्ता थे, वे पौराणिक कथाओं में एक स्वार्थी, भोग-विलासी और ईर्ष्यालु राजा के रूप में दिखाए गए।

यह बदलाव क्यों हुआ? इसकी वजह क्या थी? चलिए, इस रहस्य को जानने के लिए इंद्र की पूरी यात्रा को समझते हैं।

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क्या श्रीनिवास रामानुजन पर थी दैवीय कृपा? एक अद्भुत गणितज्ञ की प्रेरणादायक यात्रा

नमस्ते शिक्षणार्थियों

16 जनवरी 1913 का दिन इतिहास में इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उस दिन मद्रास के एक साधारण क्लर्क द्वारा भेजा गया पैकेज इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पहुंचा। इस पैकेज में कुछ गणितीय समीकरण और पत्र थे, जो वहां के प्रसिद्ध गणितज्ञ जी.एच. हार्डी को संबोधित थे। हार्डी ने उस दिन न जाने कितने ही शोध-पत्र देखे होंगे, लेकिन यह पत्र अलग था। यह किसी साधारण व्यक्ति का लिखा हुआ नहीं लग रहा था, बल्कि इसमें कुछ ऐसा था जो उन्हें सोचने पर मजबूर कर गया।

इस पत्र के लेखक थे श्रीनिवास रामानुजन, एक युवा गणितज्ञ, जिनकी गणितीय प्रतिभा किसी रहस्य से कम नहीं थी। बिना औपचारिक शिक्षा के, रामानुजन ने गणित में ऐसे-ऐसे सूत्र खोजे जो आज भी वैज्ञानिकों के लिए पहेली बने हुए हैं। यह सवाल हमेशा बना रहेगा कि रामानुजन की यह विलक्षणता उनकी मेहनत का परिणाम थी या उनके पीछे किसी दैवीय शक्ति का हाथ था।

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“अहम् ब्रह्मास्मि”: मैं ही ब्रह्म हूँ

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

क्या आपने कभी सोचा है कि आप कौन हैं? हमारे ऋषियों ने बहुत पहले ही इस सवाल का जवाब दिया था। उन्होंने कहा, “अहम् ब्रह्मास्मि”, जिसका अर्थ  है – “मैं ब्रह्म हूँ”। यह वाक्य बहुत सरल दिखता है, लेकिन इसके भीतर जो गहरा अर्थ छुपा है, यह जीवन की वास्तविकता को परिभाषित करता है।

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दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश पूजा का रहस्य: कहानियाँ, परंपराएँ और अर्थ

नमस्ते शिक्षार्थियों!

दिवाली का नाम सुनते ही हमारे मन में खुशियाँ, रोशनी, मिठाइयाँ और रंग-बिरंगी सजावट का ख्याल आता है। लेकिन इस खुशी के मौके पर एक प्रश्न  अधिकतरमन में उठता है – अगर यह पर्व भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है, तो इस दिन हम माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा क्यों करते हैं? आइए, दिवाली के इस पर्व के पीछे छिपे रहस्यों, परंपराओं और गहरे अर्थों को एक-एक करके जानें और समझें कि क्यों हर घर में दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश का विशेष पूजन होता है।

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