सांख्य दर्शन क्या है?
नमस्ते शिक्षणार्थियों,
इस संसार में हर एक इंसान या तो सुख पाना चाहता है अथवा अपने जीवन में आए दुखों और कष्टों का नाश करना चाहता है। हम जो भी काम करते हैं, पढाई करते हैं, नौकरी करते हैं, महनत करत हैं और पैंसे कमाते हैं – इन सब के पीछे दो ही प्रयोजन हैं सुख की प्राप्ति और दुख का परिहार। लेकिन लौकिक साधनों से प्राप्त होने वाला सुख नित्य नहीं होता। हम थोड़ी देर के लिए सुख का अनुभव करते हैं किन्तु थोड़ी देर बाद पुनः किसी अन्य कारण से दुखी हो जाते हैं अतः नित्य सुख की प्राप्ति और दुख के आत्यन्तिक परिहार के लिए ही हमारे ऋषियों ने दर्शनों का प्रणयन किया।
भारतीय ज्ञान परम्परा में ६ आस्तिक दर्शन और ३ नास्तिक दर्शनों को माना गया है। न्याय, वैशेषिक, साङ्ख्य, योग, पूर्वमीमांसा और उत्तरमीमांसा (वेदान्त) – यह ३ आस्तिक दर्शन कहलाते हैं। बौद्ध, जैन और चार्वाक – ये तीन नास्तिक दर्शन कहलाते हैं। यहाँ पर आस्तिक-नास्तिक का मतलब ईश्वर को मानने वाला – न मानने वाले से नहीं है क्योंकि कई ऐसे आस्तिक दर्शन भी हैं जो ईश्वर को नहीं मानते। आस्तिक और नास्तिक का यहाँ पर अर्थ है वेद को प्रमाण मानने वाला और न मानने वाला।