छठ पूजा: प्रकृति, आस्था और संस्कृति का महापर्व

नमस्ते शिक्षणार्थियों!

छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक अद्भुत पर्व है, जो प्रकृति, विज्ञान और आध्यात्मिकता का संगम है। आभार, भक्ति, और आशीर्वाद से समृद्ध यह त्योहार सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी मनाया जाता आ रहा है। इसे मनाने वाले भक्त सूरज के प्रति अपनी निष्ठा जताते हैं और छठी मैया से अपने परिवार और समाज की भलाई के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। आइए, छठ पूजा के इस अद्भुत संसार में प्रवेश करते हैं, जहाँ कहानी, भक्ति और विज्ञान का अनोखा मेल है।

छठ पूजा का परिचय

कार्तिक मास की शरद ऋतु, जब खेतों में फसल लहलहा रही होती है और प्रकृति अपनी सुंदरता पर होती है। इसी समय भारत के कई हिस्सों में छठ पूजा की शुरुआत होती है। यह पर्व हमारे और प्रकृति के बीच की गहरी कड़ी को दर्शाता है। छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि समाज को एकजुट करने का माध्यम भी है। हर साल हजारों लोग नदियों, तालाबों और अन्य जल स्त्रोतों पर इकट्ठा होते हैं, जहाँ सूरज की पहली और अंतिम किरणों को नमन किया जाता है। इस पूजा का हर दिन, हर अनुष्ठान एक नई कहानी कहता है, जो हमारे पूर्वजों से लेकर आज की पीढ़ी तक का संदेश है।

छठ पूजा का इतिहास और सांस्कृतिक महत्व

छठ पूजा का इतिहास हजारों साल पुराना है और इसका संदर्भ वैदिक काल से मिलता है। वैदिक ऋषि-मुनियों ने प्रकृति के तत्वों की महत्ता को समझा और सूर्य को जीवन का स्रोत माना। ऋग्वेद में सूर्य देव की महिमा का वर्णन मिलता है, जिसमें उन्हें पृथ्वी पर ऊर्जा और प्रकाश का स्रोत कहा गया है। इसी महिमा के प्रतीकस्वरूप छठ पूजा का आरंभ हुआ। समय के साथ यह पूजा बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के ग्रामीण अंचलों में गहराई से जुड़ गई, जहाँ सूर्य की पूजा और फसल की खुशी का यह पर्व आज भी अद्वितीय उत्साह से मनाया जाता है।

छठ पूजा का सांस्कृतिक महत्व इस बात में निहित है कि यह लोगों को एकजुट करने का एक माध्यम है। यहाँ हर व्यक्ति, चाहे वह गरीब हो या अमीर, एक समान रूप से पूजा में सम्मिलित होता है। यह पर्व समाज में समानता और एकता का संदेश देता है।

छठ पूजा का उद्देश्य और इसकी प्रासंगिकता

छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य है सूर्य देवता के प्रति आभार व्यक्त करना और उनसे जीवन के हर पहलू में आशीर्वाद प्राप्त करना। सूर्य देव, जो हमें प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करते हैं, उन्हें धन्यवाद देने के लिए यह पूजा की जाती है। सूर्य देव हम सबके पिता है, इस सृष्टि पर सब कुछ उन्हें के कारण है, हमारी यह दृष्टि यह ऊर्जा सबकुछ उन्ही से है। साथ ही, इस पर्व पर छठी मैया की भी पूजा की जाती है, जो बच्चों की रक्षा और परिवार में सुख-समृद्धि लाने वाली देवी मानी जाती हैं।

यह पर्व न केवल भगवान को समर्पित है, बल्कि अनुशासन और संयम का भी प्रतीक है। भक्तगण उपवास करते हैं, दिनभर जल का सेवन नहीं करते और चार दिनों तक सादगी और पवित्रता का पालन करते हैं। इस पर्व का संदेश यह है कि हमें अपने जीवन में शुद्धता और अनुशासन को अपनाना चाहिए।

चार पवित्र दिन: छठ पूजा की विशेषताएँ

छठ पूजा के चार दिन हर किसी के लिए विशेष और पवित्र होते हैं। यह चार दिनों का अनुष्ठान न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक भी है। आइए जानते हैं इन चार दिनों के बारे में—

(i) नहाय-खाय (पहला दिन)

पहले दिन को “नहाय-खाय” कहते हैं। इस दिन भक्तजन नदियों और पवित्र जलस्त्रोतों में स्नान कर शरीर और आत्मा की शुद्धि करते हैं। इसके बाद व्रती सात्विक भोजन करते हैं, जिसमें लहसुन और प्याज का उपयोग वर्जित होता है। इस दिन के बाद से भक्तगण पूर्ण संयम और पवित्रता का पालन करते हैं, जो इस अनुष्ठान की शुरुआत का प्रतीक है।

(ii) खरना (दूसरा दिन)

दूसरे दिन को “खरना” कहा जाता है, जो बेहद खास होता है। इस दिन व्रती दिनभर का निर्जला व्रत रखते हैं और सूर्यास्त के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। प्रसाद में गुड़ की खीर, रोटी और फल का प्रयोग होता है। खरना का प्रसाद केवल व्रती ही ग्रहण करते हैं और फिर यह प्रसाद परिवार के अन्य सदस्यों के बीच बाँटा जाता है। इस दिन का उपवास संयम, अनुशासन और मन की शुद्धि का प्रतीक है।

(iii) संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)

तीसरे दिन का संध्या अर्घ्य सबसे विशेष और भव्य होता है। व्रती और उनके परिवार के सदस्य शाम को नदी या तालाब किनारे इकट्ठा होते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। महिलाएँ सुंदर पारंपरिक वस्त्रों में सजी होती हैं और हाथ में फल, नारियल, और दीपक लेकर सूर्य को नमन करती हैं। इस समय का दृश्य अत्यंत भावुक और आध्यात्मिक होता है, जहाँ भक्तगण भक्ति गीत गाते हैं और वातावरण में श्रद्धा की गूंज होती है।

(iv) उषा अर्घ्य (चौथा दिन)

अंतिम दिन की सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का समय होता है। भक्तजन सुबह की पहली किरण का स्वागत करते हुए जल में खड़े होकर अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस समय हर भक्त के चेहरे पर संतोष और आनंद का भाव होता है। व्रत समाप्त होने के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है, जो समाज और परिवार के बीच एकता और प्रेम को मजबूत करता है।

छठ पूजा से जुड़ी लोक कथाएँ

छठ पूजा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं, जो इस पर्व को और भी प्रेरणादायक और महत्त्वपूर्ण बनाती हैं। आइए जानते हैं इन कहानियों को जो छठ पूजा की आस्था और महिमा को दर्शाती हैं—

भगवान राम और माता सीता की कथा

यह कथा त्रेता युग की है, जब भगवान राम ने रावण का वध कर अयोध्या लौटने के बाद माता सीता के साथ छठ का व्रत किया। कहा जाता है कि माता सीता ने इस पूजा के माध्यम से सूर्य देव को धन्यवाद दिया और भगवान राम के साथ इस अनुष्ठान को पूर्ण किया। उनकी यह भक्ति आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी और तब से छठ पूजा का आरंभ हुआ।

द्रौपदी और पांडवों की कथा

महाभारत में भी छठ व्रत का वर्णन मिलता है। कहते हैं कि वनवास के समय जब पांडवों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। सूर्य देव की उपासना कर उन्होंने अपने परिवार की रक्षा और समृद्धि के लिए आशीर्वाद माँगा। इस पूजा से पांडवों को कठिन समय से बाहर निकलने की शक्ति प्राप्त हुई।

कर्ण की कथा

महाभारत के योद्धा कर्ण का जीवन भी सूर्य भक्ति का प्रतीक है। कर्ण प्रतिदिन जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते थे। उनकी यह भक्ति उन्हें अद्भुत शक्ति और साहस प्रदान करती थी। उनकी निष्ठा और समर्पण छठ पूजा का प्रतीक बन गई, जो भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

राजा प्रियव्रत और रानी मलिनी की कथा

लोक मान्यता है कि राजा प्रियव्रत और रानी मलिनी संतान सुख से वंचित थे।   उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी, इसलिए उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया, जिससे उन्हें एक पुत्र तो प्राप्त हुआ लेकिन उसमें प्राण नहीं था। इससे राजा प्रियवत और माता मालिनी बहुत निराश हुए। तब मां षष्ठी, जिन्हें इस संसार के छठें भाग की स्वामिनी भी माना जाता है, उन छठी मैया के आशीर्वाद से उस पुत्र में प्राण वापस लौट आए और तभी से छठ पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। 

यह कथा दर्शाती है कि श्रद्धा और भक्ति में वह शक्ति है, जो असंभव को संभव बना सकती है। जब हम अपनी भक्ति से किसी का आह्वान करते हैं और सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं, तो हमें देवी-देवताओं का आशीर्वाद अवश्य मिलता है। छठी मैया की कृपा से प्राप्त संतान का सुख और उनका यह व्रत, लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना, जो अपनी कठिनाइयों का सामना भक्ति और श्रद्धा से करने का संदेश देता है।

छठ पूजा के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष

छठ पूजा में धार्मिकता और भक्ति के साथ-साथ विज्ञान भी समाहित है। यह अनुष्ठान न केवल आध्यात्मिक संतुलन का प्रतीक है, बल्कि इसमें स्वास्थ्य से जुड़े कुछ वैज्ञानिक लाभ भी शामिल हैं।

सूर्य की किरणों का स्वास्थ्य पर प्रभाव

सूर्य की पहली किरणों में स्वास्थ्यवर्धक गुण होते हैं। जब व्रती जल में खड़े होकर उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो यह किरणें उनके शरीर पर पड़ती हैं। यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि सूरज की सुबह और शाम की किरणें हमारी त्वचा के लिए लाभकारी होती हैं और विटामिन डी के उत्पादन में सहायक होती हैं, जो हमारे हड्डियों के लिए महत्वपूर्ण होता है।

व्रत और शारीरिक शुद्धि

छठ पूजा के दौरान चार दिनों का व्रत और संयम, शरीर की शुद्धि और मानसिक शांति के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इस दौरान व्रती केवल सात्विक भोजन करते हैं, जिससे शरीर में विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं। इस प्रकार का उपवास न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आत्मिक शुद्धि का कार्य भी करता है।

आत्म-संयम और मानसिक संतुलन

इस पूजा के अनुष्ठान में आत्म-संयम, त्याग और अनुशासन का भी विशेष स्थान है। पूरे चार दिनों तक व्रतधारी संयमित आहार, ध्यान और उपवास करते हैं, जो उन्हें मानसिक संतुलन और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। इस तरह, छठ पूजा का प्रत्येक अनुष्ठान प्रकृति और आध्यात्मिकता के बीच संतुलन बनाए रखने का संदेश देता है।

छठ पूजा का संदेश

छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह जीवन के गूढ़ संदेशों को समझने और उन्हें अपने जीवन में अपनाने का अवसर है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि आभार और श्रद्धा के साथ जीवन जीना कितना महत्वपूर्ण है। छठ पूजा हमें हमारे पूर्वजों से जोड़ती है और उनकी भक्ति, आस्था और प्रेम को हमारे जीवन में पुनः जीवित करती है।

छठ पूजा का संदेश है कि जीवन की असली सुंदरता सादगी, संतुलन और संयम में है। प्रकृति का सम्मान करना, समाज और परिवार के प्रति स्नेह रखना और भगवान से प्राप्त आशीर्वाद के प्रति आभार व्यक्त करना ही इस पर्व का मूल तत्व है। हर वर्ष जब गंगा, नदियों और तालाबों के किनारे पर छठ पूजा की धूम मचती है, तो यह पर्व हमें हमारे जीवन के मौलिक सत्य से जोड़ता है: कि हर जीवन की ऊर्जा और प्रकाश का स्रोत भगवान सूर्य देव हैं, और उनकी कृपा से ही हमारे जीवन में प्रगति और समृद्धि आती है।

छठ पूजा का यह अमर संदेश हमें यह भी याद दिलाता है कि जब हम श्रद्धा, प्रेम और निष्ठा से जीवन जीते हैं, तब हमारे जीवन में सुख, शांति और संतोष का अनुभव होता है। यह त्योहार प्रकृति के प्रति प्रेम और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने का आह्वान करता है।


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