Maharishi Dayanand Saraswati. Author of Satyarth Prakash and propagated traitvada philosophy

महर्षि दयानंद सरस्वती का त्रैतवाद

Namaste Shiksharthis! Today, we’re going to embark on a journey into the fascinating world of Indian philosophy, specifically a concept known as “Traitavad.” Now, I know that might sound a bit complex or intimidating, but don’t worry. We’re going to break it down together in a way that’s easy to understand and even a little bit fun.

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What Modern Education System Can Learn from Ancient Gurukuls

Namastey shikshanarthi’s

Imagine a world where education wasn’t about memorising facts but about learning to live wisely, being connected with nature, and gaining knowledge that shaped both the heart and mind. This was the world of the Gurukuls. Today, our education system often focuses on tests and marks, but what if we could blend the best lessons from ancient times with modern teaching? What if we could give our children the same kind of wisdom and balanced learning that the Gurukuls offered? Let’s take a journey through the lessons of ancient Gurukuls and explore what they can teach us about building a better education system today.

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गुरुकुलों से आधुनिक शिक्षा प्रणाली को क्या सीखना चाहिए?

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली, जिसे हम गुरुकुल कहते हैं, न केवल एक शैक्षिक व्यवस्था थी, बल्कि यह जीवन के प्रत्येक पहलू की समझ और समग्र विकास को सुनिश्चित करने वाली एक पूरी प्रक्रिया थी। जब हम आज के आधुनिक शिक्षा प्रणाली की बात करते हैं, तो हमें यह महसूस होता है कि गुरुकुलों के सिद्धांतों में एक ऐसी गहराई थी, जो आज की शिक्षा प्रणाली से कहीं अधिक प्रभावी थी।

आज, जब हम अपने शिक्षा प्रणाली में सुधार की बात करते हैं, तो गुरुकुलों से सीखी गई बातें बेहद महत्वपूर्ण हो जाती हैं। गुरुकुल प्रणाली में न केवल ज्ञान, बल्कि जीवन के मूल्य, अनुशासन, और आत्मनिर्भरता भी सिखाई जाती थी। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि गुरुकुलों से हम क्या सीख सकते हैं और इन सिद्धांतों को कैसे आधुनिक शिक्षा में लागू किया जा सकता है।

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What Does God Look Like

ईश्वर का स्वरूप: वेदों में निर्गुण और पुराणों में सगुण

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

ईश्वर के स्वरूप को लेकर मानव समाज में सदियों से विभिन्न मत और दृष्टिकोण रहे हैं। एक ओर वेदांत दर्शन ईश्वर को निर्गुण और निराकार मानता है, वहीं दूसरी ओर पुराणों में सगुण देवताओं की पूजा का महत्व बताया गया है। यह द्वंद्व कई बार लोगों के मन में उलझन पैदा करता है कि आखिर ईश्वर का वास्तविक स्वरूप क्या है। क्या ईश्वर केवल एक निराकार ऊर्जा है, या फिर वह किसी साकार रूप में भी हमारी पूजा-अर्चना का पात्र हो सकता है? इस लेख में हम इन प्रश्नों के उत्तर तलाशेंगे और वेदों तथा पुराणों के दृष्टिकोण से ईश्वर के दोनों स्वरूपों की गहराई से विवेचना करेंगे।

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What Does God Look Like

What Does God Look Like? Understanding the Nirguna and Saguna Aspects

Namastey Shikshanarthi’s

Imagine a young child gazing at the vast sky and asking, “What does God look like?” Does God have a form we can see, like the sun or the moon? Or is God an invisible force, like the wind or our thoughts? This question isn’t just a child’s curiosity—it has intrigued great thinkers, saints, and philosophers across centuries.

Indian scriptures have explored this mystery in depth. The Vedas describe God as Nirguna—formless, without attributes, and beyond comprehension. Meanwhile, the Puranas introduce us to Saguna forms—gods and goddesses like Shiva, Vishnu, and Durga, who have specific attributes and forms. Are these two ideas contradictory? Or do they together reveal a deeper truth?

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इंद्र : वेदों में ईश्वर से पुराणों में भोगी राजा

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

बहुत समय पहले, जब दुनिया नई थी, धरती, आकाश और नदियों को मानवीय रूप दिया गया था। बारिश, बिजली, और हवा को देवताओं की शक्तियाँ माना गया। इन देवताओं में सबसे प्रमुख थे इंद्र। वेदों के अनुसार, इंद्र एक महान योद्धा, प्रकृति के संरक्षक और देवताओं के नेता थे।

लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, इंद्र का स्वरूप बदलने लगा। जो इंद्र वेदों में धरती और आकाश को रचने वाले सृजनकर्ता थे, वे पौराणिक कथाओं में एक स्वार्थी, भोग-विलासी और ईर्ष्यालु राजा के रूप में दिखाए गए।

यह बदलाव क्यों हुआ? इसकी वजह क्या थी? चलिए, इस रहस्य को जानने के लिए इंद्र की पूरी यात्रा को समझते हैं।

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Indra: From the Lord of Vedas to the King of Myths

Namaste Shikshanarthi’s

Have you ever wondered why Indra, the most revered god in the Vedic texts, is often portrayed as a flawed king in later scriptures? Why did this mighty figure, celebrated as the universal creator, end up as a symbol of indulgence and moral weakness in the Puranas?

This transformation isn’t just a narrative shift it reveals a profound evolution in India’s spiritual and cultural consciousness. Let us unravel the layers of Indra’s fascinating story, from his glory in the Rigveda to his controversial depictions in the Ramayana, Mahabharata, and Buddhist traditions.

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