“अहम् ब्रह्मास्मि”: मैं ही ब्रह्म हूँ

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

क्या आपने कभी सोचा है कि आप कौन हैं? हमारे ऋषियों ने बहुत पहले ही इस सवाल का जवाब दिया था। उन्होंने कहा, “अहम् ब्रह्मास्मि”, जिसका अर्थ  है – “मैं ब्रह्म हूँ”। यह वाक्य बहुत सरल दिखता है, लेकिन इसके भीतर जो गहरा अर्थ छुपा है, यह जीवन की वास्तविकता को परिभाषित करता है।

अहम ब्रह्मास्मि: इसका अर्थ और महत्व

“अहम् ब्रह्मास्मि” एक महावाक्य है, जिसका शाब्दिक अर्थ है – “मैं ब्रह्म हूँ”। इसे बृहदारण्यक उपनिषद से लिया गया है। यह वाक्य हमें बताता है कि हम केवल एक शरीर नहीं हैं, बल्कि हम उस असीमित शक्ति का हिस्सा हैं जिसे ब्रह्म कहा जाता है।

अब आप सोच रहे होंगे कि “मैं ब्रह्म हूँ” का क्या अर्थ  है? इसका सीधा अर्थ यह है कि हमारी वास्तविक पहचान शरीर नहीं, बल्कि वह अनंत आत्मा है, जो कभी मरती नहीं और न ही पैदा होती है। हम वही अनंत ब्रह्म हैं, जिसका कोई अंत नहीं है।

हमारा और ब्रह्म का अस्तित्व: सीमित और असीमित

अब यहाँ पर एक सवाल आता है। हम जानते हैं कि हमारा शरीर सीमित है, हम पैदा होते हैं और एक दिन मर जाते हैं। हमें खाना, पानी, और ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है। हमारा अस्तित्व इन चीज़ों पर निर्भर है। हम समय के साथ बूढ़े होते हैं, और फिर अंत में हमारी मृत्यु हो जाती है।

लेकिन दूसरी तरफ, ब्रह्म का अस्तित्व बिल्कुल अलग है। वह न कभी पैदा हुआ है और न ही उसकी कोई मृत्यु है। वह असीमित है, अनंत है, और किसी चीज़ पर निर्भर नहीं करता। वह हमेशा से था और हमेशा रहेगा।

अब सवाल यह आता है कि अगर हमारा अस्तित्व और ब्रह्म का अस्तित्व इतने अलग हैं, तो हम कैसे कह सकते हैं कि “मैं ब्रह्म हूँ”? यह तो उलझन वाली बात लगती है, है ना?

क्या हम भगवान हैं?

बचपन से हम यह सुनते आए हैं कि “भगवान हमारे अंदर हैं”। लेकिन क्या यह सच है? क्या हम सच में भगवान हैं? अगर ऐसा है, तो हम बीमार क्यों पड़ते हैं, हम गलती क्यों करते हैं, और हम मरते क्यों हैं?

वास्तव में, बात यह है कि भगवान हमारे अंदर नहीं, बल्कि हम भगवान के अंदर हैं। इसका अर्थ  यह है कि हम भगवान का हिस्सा हैं, लेकिन भगवान हममें समाहित नहीं हो सकते, क्योंकि भगवान असीमित हैं और हम सीमित हैं।

जैसे समुद्र की लहरें समुद्र का हिस्सा होती हैं, लेकिन समुद्र लहरों में समा नहीं सकता। लहरें समुद्र से बनती हैं, लेकिन समुद्र लहरों से नहीं बनता। इसी तरह, हम भगवान का हिस्सा हैं, लेकिन भगवान हममें नहीं होते।

भगवान श्रीकृष्ण ने भी भगवद गीता के अध्याय 9 श्लोक 29 में कहा है, 

राज विद्या योग समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।

ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥29॥

“सभी जीव मुझमें निवास करते हैं, लेकिन मैं किसी एक में निवास नहीं करता।” इसका अर्थ है कि हम सभी भगवान के अंश हैं, लेकिन भगवान किसी एक जीव में नहीं समा सकते।

जीवन क्या है: अनुभवों की श्रृंखला

अब आइए, जीवन को समझते हैं। हम क्या हैं? हमारा जीवन क्या है? क्या हम केवल शरीर हैं या इससे कुछ ज्यादा?

वास्तव में, हमारा जीवन हमारे अनुभवों की एक श्रृंखला है। जब हम किसी चीज़ को महसूस करते हैं, तो हमारे भीतर एक सुब्जेक्ट होता है – यानी हम, जो उस अनुभव को महसूस करते हैं। और एक ऑब्जेक्ट होता है – यानी वह चीज़, जिसे हम महसूस कर रहे होते हैं।

जब आप कोई अनुभव करते हैं, जैसे खाने का स्वाद लेना, आपको जो आनंद महसूस होता है, वह सिर्फ आपके शरीर का अनुभव नहीं है। वास्तव में, यह आपका आत्मा, यानी ब्रह्म, उसी ब्रह्म को अनुभव कर रही होती है, जो हर चीज़ में मौजूद है।

इसका अर्थ  यह है कि जब आप किसी चीज़ का अनुभव करते हैं, तो ब्रह्म आपके माध्यम से खुद को अनुभव कर रहा होता है। यही “अहम् ब्रह्मास्मि” का वास्तविक अर्थ है – आप ब्रह्म हैं, और हर अनुभव के जरिए आप उसी ब्रह्म को अनुभव कर रहे हैं।

विज्ञान की नजर से: बिग बैंग और तत्वों का निर्माण

अब आइए इसे विज्ञान के नजरिए से समझते हैं। बिग बैंग के समय ब्रह्मांड की शुरुआत हुई। उस समय छोटे-छोटे कण बने, जिन्हें क्वार्क्स, इलेक्ट्रॉन्स, और प्रोटॉन्स कहा जाता है। इन कणों से एटम्स बने, और फिर एटम्स से तारे और ग्रह बने।

हमारे शरीर में जो तत्व हैं, वे भी उसी समय बने थे। यह बहुत अद्भुत बात है कि हम उन्हीं तत्वों से बने हैं, जो ब्रह्मांड के शुरूआती समय से हैं। अब जब हम विज्ञान का अध्ययन करते हैं, तो हम वास्तव में उन्हीं तत्वों का अध्ययन कर रहे होते हैं, जिनसे हम खुद बने हैं।

इसका अर्थ  है कि जब हम अपने आस-पास की चीज़ों को देखते हैं, तो हम ब्रह्म के ही अंश को देख रहे होते हैं। इस तरह, ब्रह्म हमारे माध्यम से खुद को देख रहा है। यही “अहम् ब्रह्मास्मि” का वैज्ञानिक दृष्टिकोण है – हम उसी ब्रह्म के बने हैं, और हम उसी का अनुभव कर रहे हैं।

निष्कर्ष: “अहम् ब्रह्मास्मि” का संदेश

“अहम् ब्रह्मास्मि” का महावाक्य हमें यह सिखाता है कि हम केवल एक शरीर नहीं हैं। हम उस अनंत ब्रह्म के अंश हैं, जो न कभी पैदा हुआ है और न कभी मरेगा।

हमारा शरीर भले ही सीमित हो, लेकिन हमारी आत्मा अनंत है। जब हम अपने शरीर से परे जाकर अपने वास्तविक रूप को पहचानते हैं, तब हमें यह एहसास होता है कि हम ब्रह्म हैं। हर अनुभव के जरिए हम उसी ब्रह्म को अनुभव कर रहे होते हैं।

इसलिए, “अहम् ब्रह्मास्मि” हमें यह सिखाता है कि हम सभी में ब्रह्म है, और हमें अपने जीवन को इस दृष्टिकोण से देखना चाहिए। यह वाक्य हमें जीवन के हर पल का आनंद लेने और उसे ब्रह्म के रूप में अनुभव करने का संदेश देता है।


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