सांख्य दर्शन क्या है?

नमस्ते शिक्षार्थियों!

क्या आपने कभी यह महसूस किया है कि इस विशाल ब्रह्मांड में जो कुछ भी हो रहा है, वह एक अदृश्य शक्ति के द्वारा संचालित हो रहा है? आप जहां भी देखें, पेड़, पौधे, जीव-जंतु, मनुष्य, यहाँ तक कि आकाश और तारे, सब कुछ लगातार बदल रहा है। इस परिवर्तन की वजह क्या है? आखिर कौन सी शक्ति है जो इन सबको नियंत्रित करती है? यह शक्ति कोई और नहीं बल्कि हमारे प्राचीन भारतीय दर्शन में वर्णित प्रकृति और पुरुष का मिलन है।

आइए, हम इस गूढ़ रहस्य को समझने के लिए एक यात्रा पर निकलते हैं, जहां हम जानेंगे कि सांख्य दर्शन कैसे सृष्टि की रचना, उसके कार्य-व्यवहार और मनुष्य के दुखों के कारणों का विस्तार से वर्णन करता है।

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Lord Shiva meditating

कश्मीरी शैववाद क्या है?

नमस्ते शिक्षार्थियों!

हिंदू, भगवान शिव की पूजा गहरी भक्ति से करते हैं, वे उपवास रखते हैं, प्रार्थना करते हैं और अपने पूर्वजों से प्राप्त रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हम ये सब क्यों करते हैं? इन प्रथाओं के पीछे का सच्चा अर्थ क्या है? इस लेख में, हम शैववाद की कहानी का अन्वेषण करेंगे, जो भगवान शिव को समर्पित एक परंपरा है। हम समय के प्रवाह में वापस जाकर इसके मूल को समझेंगे, शैववाद के भीतर विभिन्न मार्गों के बारे में जानेंगे, और उस शक्तिशाली दर्शन को खोजेंगे जो हमें शिव से जोड़ता है। आइए इस यात्रा को साथ में शुरू करें।

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अद्वैत बनाम शुद्ध-अद्वैत: शंकराचार्य और वल्लभाचार्य के विचारों का अन्तर!

नमस्ते शिक्षार्थियों!

क्या यह संसार और ईश्वर एक ही हैं? या दोनों अलग-अलग शक्तियाँ हैं? यह मानवता की एक अंतहीन खोज रही है कि वह एक ऐसा उत्तर, एक ऐसी व्याख्या ढूंढ निकाले जो सब कुछ स्पष्ट कर दे।

हमारी बुद्धि, चाहे वह कितना भी विशाल क्यों न हो, उस सब को समझने की कोशिश करती है।

भारतीय दर्शन इसी खोज से भरा पड़ा है और अद्वैत और शुद्ध-अद्वैत जैसी महान दार्शनिक अवधारणाओं ने इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया है। इनमें से शंकराचार्य का अद्वैत और वल्लभाचार्य का शुद्धाद्वैत विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, जो इस पुरातन प्रश्न पर अपने अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं: क्या केवल एक ही वास्तविकता है या कई?

तो आइए जानते हैं कि शंकराचार्य और वल्लभाचार्य ने इस विषय पर क्या विचार प्रस्तुत किए और कैसे ये दोनों मत एक ही लक्ष्य की ओर अलग-अलग रास्ते दिखाते हैं।

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क्या है स्वामी विवेकानन्द का नव-वेदांत?

नमस्ते शिक्षार्थियों!
यह कल्पना करें कि कोई आपको बताए कि भारत के दो सबसे महान विचारक, स्वामी विवेकानंद और आदि शंकराचार्य, एक दूसरे से असहमत थे! कुछ लोगों को लगता था कि स्वामी विवेकानंद शंकराचार्य की शिक्षाओं के खिलाफ थे, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा था? इस कहानी में, हम देखेंगे कि कैसे इन दोनों महान पुरुषों ने वेदांत में विश्वास किया, लेकिन थोड़े अलग तरीके से। आइए समझते हैं कि ऐसा क्यों और कैसे हुआ!

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A philosophical debate between Shankaracharya and Vallabhacharya

Namaste Shiksharthis!

Our mind, no matter how vast, strives to understand it all. It’s been humanity’s quest to find that one answer, that singular explanation that would bring clarity to everything. Indian philosophy is rich with such inquiries, and the search for this one fundamental reality has shaped several philosophical schools. Among these, Advaita by Shankaracharya and Shuddhadvaita by Vallabhacharya stand out, offering unique perspectives on this age-old question: Is there just one reality, or are there many?

Join us on this journey through these fascinating philosophies, where we explore the insights of these great thinkers and their approach to understanding the universe.

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Understanding Swami Vivekananda’s Neo-Vedanta

Namaste Shiksharthis! In 1893, Swami Vivekananda’s historic speech at the Parliament of Religions in Chicago placed India’s spiritual heritage in the global spotlight. But alongside this recognition, some accused him of rejecting the teachings of Adi Shankaracharya, one of India’s greatest philosophers. Vivekananda’s Neo-Vedanta seemed to challenge traditional Advaita Vedanta, leading to debates about whether he was an opponent of Shankaracharya. Was this truly the case? Let’s explore the distinctions between their philosophies and the reasons behind the development of Neo-Vedanta.

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