सांख्य दर्शन क्या है?

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

इस संसार में हर एक इंसान या तो सुख पाना चाहता है अथवा अपने जीवन में आए दुखों और कष्टों का नाश करना चाहता है। हम जो भी काम करते हैं, पढाई करते हैं, नौकरी करते हैं, महनत करत हैं और पैंसे कमाते हैं – इन सब के पीछे दो ही प्रयोजन हैं सुख की प्राप्ति और दुख का परिहार। लेकिन लौकिक साधनों से प्राप्त होने वाला सुख नित्य नहीं होता। हम थोड़ी देर के लिए सुख का अनुभव करते हैं किन्तु थोड़ी देर बाद पुनः किसी अन्य कारण से दुखी हो जाते हैं अतः नित्य सुख की प्राप्ति और दुख के आत्यन्तिक परिहार के लिए ही हमारे ऋषियों ने दर्शनों का प्रणयन किया।

भारतीय ज्ञान परम्परा में ६ आस्तिक दर्शन और ३ नास्तिक दर्शनों को माना गया है। न्याय, वैशेषिक, साङ्ख्य, योग, पूर्वमीमांसा और उत्तरमीमांसा (वेदान्त) – यह ३ आस्तिक दर्शन कहलाते हैं। बौद्ध, जैन और चार्वाक – ये तीन नास्तिक दर्शन कहलाते हैं। यहाँ पर आस्तिक-नास्तिक का मतलब ईश्वर को मानने वाला – न मानने वाले से नहीं है क्योंकि कई ऐसे आस्तिक दर्शन भी हैं जो ईश्वर को नहीं मानते। आस्तिक और नास्तिक का यहाँ पर अर्थ है वेद को प्रमाण मानने वाला और न मानने वाला।

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सनातन धर्म में सोलह संस्कार

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

एक बार एक युवा बालक ने अपने दादा से पूछा, “दादाजी, जीवन इतना अनिश्चित क्यों है? हमें कैसे पता चले कि हम सही राह पर हैं?”

दादा मुस्कुराए और बोले, “बेटा, हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों साल पहले इस सवाल का जवाब खोज लिया था। उन्होंने हमारे लिए संस्कारों की व्यवस्था की। ये संस्कार हमें हर जीवन-चरण में सही दिशा दिखाते हैं, हमें शुद्ध करते हैं और समाज व परिवार से जोड़ते हैं।”

बालक ने उत्सुकता से पूछा, “क्या संस्कार सिर्फ पूजा हैं?”

दादा ने गंभीरता से उत्तर दिया, “संस्कार पूजा से अधिक हैं। ये जीवन के हर महत्वपूर्ण पल को पवित्र बनाते हैं। जन्म से मृत्यु तक, ये हमें हमारी परंपरा, संस्कृति और धर्म से जोड़ते हैं।”

यहाँ से हमारी यात्रा शुरू होती है, सनातन धर्म के सोलह संस्कारों को समझने की। आइए, इन संस्कारों का गहराई से अध्ययन करें।

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छठ पूजा: प्रकृति, आस्था और संस्कृति का महापर्व

नमस्ते शिक्षणार्थियों!

छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक अद्भुत पर्व है, जो प्रकृति, विज्ञान और आध्यात्मिकता का संगम है। आभार, भक्ति, और आशीर्वाद से समृद्ध यह त्योहार सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी मनाया जाता आ रहा है। इसे मनाने वाले भक्त सूरज के प्रति अपनी निष्ठा जताते हैं और छठी मैया से अपने परिवार और समाज की भलाई के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। आइए, छठ पूजा के इस अद्भुत संसार में प्रवेश करते हैं, जहाँ कहानी, भक्ति और विज्ञान का अनोखा मेल है।

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Acharya Pingla

भारतीय आचार्य ने कैसे रची कम्प्यूटर की भाषा?

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली, जिसे हम गुरुकुल कहते हैं, न केवल एक शैक्षिक व्यवस्था थी, बल्कि यह जीवन के प्रत्येक पहलू की समझ और समग्र विकास को सुनिश्चित करने वाली एक पूरी प्रक्रिया थी। जब हम आज के आधुनिक शिक्षा प्रणाली की बात करते हैं, तो हमें यह महसूस होता है कि गुरुकुलों के सिद्धांतों में एक ऐसी गहराई थी, जो आज की शिक्षा प्रणाली से कहीं अधिक प्रभावी थी।

आज, जब हम अपने शिक्षा प्रणाली में सुधार की बात करते हैं, तो गुरुकुलों से सीखी गई बातें बेहद महत्वपूर्ण हो जाती हैं। गुरुकुल प्रणाली में न केवल ज्ञान, बल्कि जीवन के मूल्य, अनुशासन, और आत्मनिर्भरता भी सिखाई जाती थी। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि गुरुकुलों से हम क्या सीख सकते हैं और इन सिद्धांतों को कैसे आधुनिक शिक्षा में लागू किया जा सकता है।

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गुरुकुलों से आधुनिक शिक्षा प्रणाली को क्या सीखना चाहिए?

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली, जिसे हम गुरुकुल कहते हैं, न केवल एक शैक्षिक व्यवस्था थी, बल्कि यह जीवन के प्रत्येक पहलू की समझ और समग्र विकास को सुनिश्चित करने वाली एक पूरी प्रक्रिया थी। जब हम आज के आधुनिक शिक्षा प्रणाली की बात करते हैं, तो हमें यह महसूस होता है कि गुरुकुलों के सिद्धांतों में एक ऐसी गहराई थी, जो आज की शिक्षा प्रणाली से कहीं अधिक प्रभावी थी।

आज, जब हम अपने शिक्षा प्रणाली में सुधार की बात करते हैं, तो गुरुकुलों से सीखी गई बातें बेहद महत्वपूर्ण हो जाती हैं। गुरुकुल प्रणाली में न केवल ज्ञान, बल्कि जीवन के मूल्य, अनुशासन, और आत्मनिर्भरता भी सिखाई जाती थी। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि गुरुकुलों से हम क्या सीख सकते हैं और इन सिद्धांतों को कैसे आधुनिक शिक्षा में लागू किया जा सकता है।

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What Does God Look Like

ईश्वर का स्वरूप: वेदों में निर्गुण और पुराणों में सगुण

नमस्ते शिक्षणार्थियों,

ईश्वर के स्वरूप को लेकर मानव समाज में सदियों से विभिन्न मत और दृष्टिकोण रहे हैं। एक ओर वेदांत दर्शन ईश्वर को निर्गुण और निराकार मानता है, वहीं दूसरी ओर पुराणों में सगुण देवताओं की पूजा का महत्व बताया गया है। यह द्वंद्व कई बार लोगों के मन में उलझन पैदा करता है कि आखिर ईश्वर का वास्तविक स्वरूप क्या है। क्या ईश्वर केवल एक निराकार ऊर्जा है, या फिर वह किसी साकार रूप में भी हमारी पूजा-अर्चना का पात्र हो सकता है? इस लेख में हम इन प्रश्नों के उत्तर तलाशेंगे और वेदों तथा पुराणों के दृष्टिकोण से ईश्वर के दोनों स्वरूपों की गहराई से विवेचना करेंगे।

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